Sunday, April 20, 2008

कतेक रास गप्प

शब्द बिसरल जाइत अछि। वाक्य पूरा हेबासे पुब थमअ लगैत अछि। ने सुननिहार कियो, ने बजनिहार कियो, चारु दिस जंगल आ भकुएल हम विदा भेल छी। गाछ तर कने काल रुकई छी । गाछ सब अपना में गप्प का रहल अछि पात हिला- हिला । कान लगा के डाईर में सुनबाक प्रयास असफल रहैत अछि। पातक हिलकोर यथावत छै आ हमर उपस्थिति के केकरो आभास ने। तैयो चिचियैत छी। बताह भेल छी गप्प दै लेल, कियो सुननिहार नई, कियो बजनिहार नई।

कतेक दिन से अहिना छी। घनघोर जंगल खत्म नई भ रहल अछि, बहुत दूर कतौ से प्रकास आबि रहल अछि। मुदा रस्ता- पेरा के कोनो ठेकान नई। भरि दिन चइल के पिछला दिन स बेसी हरा जाईत छी। आब त कतो पहुंचे के आशा सेहो जाइत रहल। इहे हमर विश्व अछि आ एतबे अछि। सब गाछ इकरंगाह छै, कुरूप, तमसेल सन। कखनो काल जोर से हवा चलैत अछि आ डारी-पात तांडव कर लगैत अछि। हमरा आब डर नई लगैत अछि ई सब से, हमरा प ज क्यो बिगरल अछि त बिगर' दियौ। हमरा केकरो से मतलब नई बस सुननिहार चाहि। कतेक रास गप्प अछि, कियो सुननिहार नई, कियो बजनिहार नई।

4 comments:

Gajendra said...

बहुत नीक लागल।

Udan Tashtari said...

हिन्दी चिट्ठाजगत में आपका हार्दिक स्वागत है. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाऐं.

एक निवेदन: कृप्या वर्ड वेरीफिकेशन हटा लें तो टिप्पणी देने में सहूलियत होगी.

S.K. Jha said...

I am really So happy to see maithali on the net. Please post regular articles

Sachit Jha

Unknown said...

Thanks for all your comments :)