Friday, July 24, 2009

पुरान घर उठे, नव घर खसय


उप्सुक्तावस इन्टरनेट पर "मैथिली" आ "मिथिला" सर्च केलों।











विश्वास नै भेल। एक-दू बेर आइंख मीच के देखालिए, मुदा ई ठीके सत्य छल। दू साल पहिने ज हम अहिना सर्च करैत छलों त एकाध त हरेल-भुतियेल वेबसाइट भेटैत छत, जेई में सेहो बस मैथिली के चर्चा रही, मैथिली नै रहै। झाजी नामक जे कम्युनिटी हम २००५ में खोलने रही (ऑरकुट पर), ताइक- १००-२०० गोट के निमंत्रण पठेने रहियें, तै में आई ७००० सदस्य छैथ। किछु दिन से विदेह नाम से मैथिल ई-पत्रिका निकेल रहल ऐछ, आ नव-२ लेखक-लेखिका सबक लिखल परही मोन गदगद भ जाइत अछि। एक टा सुखद परिवर्तन छि जे लेल एही प्रयास में लागल सब लोकनिक के धन्यवाद रहत। इन्टरनेट के माध्यम से सोशल नेट्वर्किंग एतेक विकसित भ गेल अछि, आ मिथिलाक लोक एतेक कंप्यूटर प्रयोग कर लागलअछि जे हमरा आशा नै पूर्ण विश्वास ऐछ जे अबी बला किछु साल मिथिला आ मैथिली लेल बहुत नीक रहत।

एहन परिवर्तन के सदैव स्वागत रहैत छै मुदा दिमाग में "कोना", "कियेक", "कतेक" सन प्रश्न सेहो उठैत छै। हमरा मैथिली साहित्य के बेसी ज्ञान नै मुदा नानाबबा (डॉ. आनंद मिश्र) लग रही तै दुआरे किछु-२ ई विषयक गप्प मोन परैत ऐछ। जेना हिन्दी सुगम-संगीत के ६०'-७०' में स्वर्णिम काल मानल जाइत छै तहिना मैथिलिक सेहो एकटा स्वर्णिम काल छले। एक्केटा नै, बहुत रास! ज्योतिरीश्वर, विद्यापति, चंदा झा| आ २०सम सदी में हरिमोहन झा, आ फेर बहुते लोक । सबक नाम नै लिखब; नानाबबा के नाती रही तै दुआरे बेसी लोक हमर नाना व मामा लागैत छला, आ कियो छूटी गेला त रुईस जेता। मुदा मोटा-मोटी हमर जन्मक बाद मैथिली साहित्य अवसान पर छल। मैथिलीक प्रचलित पत्रिका मिथिला मिहिर कोनो कारन वश बंद भ गेल, आ अर्थ व स्वार्थ के अभाव स मैथिली साहित्य दबैत गेल। साहित्ये कियेक, हम कहब जे मैथिली भाषा के दाबी क्रमशः कम होइत गेल आ मैथिलीक किताब आ लेख, भोजपुरी कैसेट आ हिन्दी उपन्यासक बोझ स दबैत गेल। कहियो-२ विद्यापति समारोह आ विभिन्न प्लात्फोर्म पर मैथिलिक चर्चा अवस्य होइत रहल मगर ओ पहिने वला (जेना सुनने रहिये) गप्प नै छले । बहुत रास कारण अछि। एकटा त मिथिलाक घर में मैथिली के बदला हिन्दी आ अंग्रेज़ी बजा जे लागल, जे एकटा "फैशन" जेना पसरित गेल। आ किछु त समयक प्रभाव सेहो रहल, ग्लोबलाइजेशन के किछु प्रभाव त मैथिली भाषा पर सेहो परल। दोष ककरो नै, कियेक त जाबे तक हम सभ बुइझ्तिये परिवर्तन आइब चुकल छल।

फेर पुरबा हवा उठल ऐछ। भरिसक हमरा सब के ई चीज़ के आभास भ चुकल ऐछ। वा एहो भ सकैत ऐछ जे जिनका लेल काइल हिन्दी-अंग्रेज़ी फैशन रहैन, तिनका लेल आई मैथिली फैशन भ गेल हों। जे-से जे आई हवा छै, से काइल बिहैर बने; जे आई फुही छै, से काइल बरसैत बने।

अहि आशाक संग।

Saturday, January 31, 2009

सरस्वती पूजा

काइल घर फ़ोन लगेलौं पता लागल सरस्वती पूजा छै माँ कहलें किताब नै छुबि लेल, हँसी छुटल, संग-संग मोनक गाड़ी विदा भेल अतीत में। १५ वर्ष पूर्व, ठीक से मोन परैत अछि, सरस्वती पूजा के अलगे उत्साह रहित छल। घर में उध्सल किताब कॉपी सरियेल जाई, चौकी पर चौकी बैसा के भगवती के स्थापित केल जाई। धुप, दीप, ताम्बुल, नाना-विध नैवैद्यान, मोटका चमकैत गत्ता वाला किताब सब ऊपर। भोर से नहा सुना के लागल रही इंतज़ाम में। सबसे खुशी रहित छल जे ओई दिन किताब-कॉपी छुनाई मना रहै। लोकक विश्वास छै जे भगवती प्रसन्न भेला पर किताब में प्रवेश जेती, फेर आनंद ! सरस्वतीक आशीर्वाद हुए नै मरखाह मास्टरक डर नै पहारा रटि के चिंता। "विद्या ददाति विनयम"....

पता नै गप्प कतेक सत्य छल, जतेक साल भगवतीक आराधना केलों, भगवती प्रसन्न सन नै बुझैले। भरिसक धुपक धुआं से औना गेल वा नैवद्य में घी के मात्र कम गेल हुए। कि पता बहुत कॉपी खोली के देखने होइत होमवर्क के बदला में कट्टम-कुट्टी देख तमसा गेल होइत। जे से, हुनकर मोन, गिनती साधारण विद्यार्थी में रहल भुसकोल नै कह्लौने त।

बहुत साल भेल सरस्वती पूजा देखना। कॉलेज तक तैयो हॉस्टल में मूर्ति बैसोल जे, मुदा आब पूजा से बेसी जोड़ प्रसाद पर रहे। किताब कॉपी के जगह सन-पपडी आ पेडा ल ललक, आरती से बेसी मोन रौतका भोज पर रहे। मंत्र-जाप बिसरा गेल, सरस्वतीजी के नवका सिनेमा के सुगम संगीत सुनी के संतोष करा परें। किताब कॉपी अवश्य नै छुल जे। एतबा अभ्यास बनल रहल। भगवती प्रसन्न भेली की नै, नै कैह, मुदा भरिसक ई निरंतरता से कनेक मुंह डोलेलेंन। ओई समयक हमर सोच एतबे रहल- "कर्मण्ये वा धिखा रस्ते....."। पिछला ४-५ साल से ओतबो पूजा नै क सकलौं। नै सरस्वती पूजा के छुट्टी भेटे, नै क्यो ई सब चीज़ के मान्यता दे। धर्म के जगह विग्यान ल ललक। भगवतीक उपस्थिति के आभास जैत रहल, गीताक श्लोक सेहो मोन नै रहल।

आब अमरीका में रहित छि। अध्ययन अखैन धरी चिल रहल ऐछ। विद्या के शोध में मग्न रहित छि, विद्याक देवी अपन भक्त सब संगे मग्न हेती। कतौ लग पास में सरस्वती पूजा भ रहल ऐछ। दोस्त चलई लेल कैह रहल ऐछ। जा सकैत छि, मुदा नै जेब। १२$ के दर्शन छै, संग-२ भोज सेहो "कॉम्बो ऑफर"। मुदा किताब में गत्ता नै लागैत अछि, धुप-दीपक सरंजाम सेहो नै ऐछ, आ भगवती खेती की॥ पोपकोर्न?

सरस्वती पूजा अप्रासंगिक भ चुकल अछि।

Sunday, April 20, 2008

कतेक रास गप्प

शब्द बिसरल जाइत अछि। वाक्य पूरा हेबासे पुब थमअ लगैत अछि। ने सुननिहार कियो, ने बजनिहार कियो, चारु दिस जंगल आ भकुएल हम विदा भेल छी। गाछ तर कने काल रुकई छी । गाछ सब अपना में गप्प का रहल अछि पात हिला- हिला । कान लगा के डाईर में सुनबाक प्रयास असफल रहैत अछि। पातक हिलकोर यथावत छै आ हमर उपस्थिति के केकरो आभास ने। तैयो चिचियैत छी। बताह भेल छी गप्प दै लेल, कियो सुननिहार नई, कियो बजनिहार नई।

कतेक दिन से अहिना छी। घनघोर जंगल खत्म नई भ रहल अछि, बहुत दूर कतौ से प्रकास आबि रहल अछि। मुदा रस्ता- पेरा के कोनो ठेकान नई। भरि दिन चइल के पिछला दिन स बेसी हरा जाईत छी। आब त कतो पहुंचे के आशा सेहो जाइत रहल। इहे हमर विश्व अछि आ एतबे अछि। सब गाछ इकरंगाह छै, कुरूप, तमसेल सन। कखनो काल जोर से हवा चलैत अछि आ डारी-पात तांडव कर लगैत अछि। हमरा आब डर नई लगैत अछि ई सब से, हमरा प ज क्यो बिगरल अछि त बिगर' दियौ। हमरा केकरो से मतलब नई बस सुननिहार चाहि। कतेक रास गप्प अछि, कियो सुननिहार नई, कियो बजनिहार नई।

Saturday, April 19, 2008

कत' विदा भेलौं?

मोन भेल कने घुइम के आबी। कपड़ा- लत्ता पहिरते रही कि रजुआ दौरल एल .... संग जाई के रट-रट लागल। कियेक ने, घूमे ले ल जेबई त लामंचुस भेटतै, आ भाग रहले त सिंघारा सेहो । चल तखन, जल्दी से तैयार भ जो, कहि हम्हु केश फेर लगलौं।

२ मिनट में सामने ठार छल हाथ में झोरा लेने आ एकटा पुर्जी। ऐना बुझाइल जे एत्तेक काल से अहि हेतु षड्यंत्र रचल जा रहल छल भानस में। बटुआ खोलि पाई गिन लगलौं। आई उधारी ने लेल जेत । कतेक दिन मुंह नुकबैत रह्बई रामजी स', काल्हिये ओकर नौकर न-नुकर करैत छल। आई फेरो ई पुर्जी। नई आई नई। कतेक खपत छै अई घरक। आ एत्तेक पाहून-परख, कोन काज छै एतेक सामाजिकता देखबई के। अहि सब तारतम्य में रही कि रजुआ के छिट्किनी खोलैत देखलों। बेचारा से नई खुजलईत चिचिये लागल। कने काल ले सबटा चिंता बिसरा गेल। पनबट्टी ल विदा भेलौं पुब दिस। रजुआ लुटकुनिया बनल पाछू-२ आब लागल।

(क्रमशः)

Friday, April 11, 2008

चिट्ठी

चिट्ठी लिखे के मोन होइत अछि
ठीक से मोन नई अबैत अछि कि कत्तेक दिन भेल चिट्ठी लिखना -
१० साल वा ओहू स बेसी

स्कूल में परहैत रही - नवोदय विद्यालय
हॉस्टल से कहियो काल घर चिट्ठी लिखी
नब-नब सीखने रही तहु दुआरे,

कोई भेटैत छल त ओकर पता पुइछ के नोट क ली;
आ छुट्टी दिन डायरी के पिछला पन्ना के अध्ययन क के
दु- चाइर गोटा के नाम टिक करी चिट्ठी लिखबा लेल
मुदा गप्प कमोवेश एक्के-जेहन
"आदरणीय ............., सादर प्रणाम ............................................. "

आ फेर ओई पर टिकेट लगाबी, पता लिखी डायरी से देख-२
साँझ में विदा होई चिट्ठी खसबै ले - एक से दु हफ्ता लगैत छल चिट्ठी पहुँचै में
मास- दु मास पर ओकर जवाब आबे
अखनो परल अछि घर पर हमर लिखल पत्र आ आइल जवाब
आब पढ़ई छी त हँसी छुटैत अछि - १० साल पूर्व येह अनमना छल।

फेर घर में टेलीफोन एल - नब-नब
आब चिट्ठी लिखै में आस्कत लागा लागल
बूथ पर लोकक भीड़ बढ़एत गेल आ डाक-पेटी खलियैत गेल
कहियो काल आदतन चिट्ठी अवश्य लिखी मुदा ओ डायरी में पड़ले रही जे -
साल- दु साल पर कहियो कोनो कागत संगे ओ चिट्ठी डाक-पेटी में जे
आ जवाब आब फोने पर- इहो जे चिट्ठी पहुंचल की नई ?
पहिने बला उत्साह नई रहल - ख़त्म होइत गेल।

आब त मोबाइल जेबी में ल'के घुमैत छी -
चिट्ठी-पत्री अप्रासंगिक भा गेल अछी
ललका डिब्बा (डाक-पेटी) मुंह दुसैत अछि।

डायरी में आब पता नई लिखाइत छै-
पुरना पता सब सेहो हरा गेल।

माँ कहियो काल कहैत रहै छैत-
मुदा आब चिट्ठी नई लिखाइत अछि
ओ कला बिसरा गेल - ओ लगाव जाइत रहल।

Thursday, April 10, 2008

थकमकैत

मिथिला में जन्म भेल, मैथिल छी
सोचलौं मैथिली में लिखल जे -
आब त ब्लॉगर सेहो मैथिली (देवनागरी) बुझैत अछि।

मुदा अंग्रेज़ी में मैथिली टाइप केनाई -
आ ई नबका एडिटर
कांफुजिया गेलऔं - अकछ भ गेलों,
अखैन विश्राम लइत छी,
- पुन्नू झा

Friday, March 14, 2008

मैथिली ब्लॉग

ई हमर मैथिली में ब्लॉग अछि .... लिखबाक अछि बहुत किछु