Sunday, April 20, 2008

कतेक रास गप्प

शब्द बिसरल जाइत अछि। वाक्य पूरा हेबासे पुब थमअ लगैत अछि। ने सुननिहार कियो, ने बजनिहार कियो, चारु दिस जंगल आ भकुएल हम विदा भेल छी। गाछ तर कने काल रुकई छी । गाछ सब अपना में गप्प का रहल अछि पात हिला- हिला । कान लगा के डाईर में सुनबाक प्रयास असफल रहैत अछि। पातक हिलकोर यथावत छै आ हमर उपस्थिति के केकरो आभास ने। तैयो चिचियैत छी। बताह भेल छी गप्प दै लेल, कियो सुननिहार नई, कियो बजनिहार नई।

कतेक दिन से अहिना छी। घनघोर जंगल खत्म नई भ रहल अछि, बहुत दूर कतौ से प्रकास आबि रहल अछि। मुदा रस्ता- पेरा के कोनो ठेकान नई। भरि दिन चइल के पिछला दिन स बेसी हरा जाईत छी। आब त कतो पहुंचे के आशा सेहो जाइत रहल। इहे हमर विश्व अछि आ एतबे अछि। सब गाछ इकरंगाह छै, कुरूप, तमसेल सन। कखनो काल जोर से हवा चलैत अछि आ डारी-पात तांडव कर लगैत अछि। हमरा आब डर नई लगैत अछि ई सब से, हमरा प ज क्यो बिगरल अछि त बिगर' दियौ। हमरा केकरो से मतलब नई बस सुननिहार चाहि। कतेक रास गप्प अछि, कियो सुननिहार नई, कियो बजनिहार नई।

Saturday, April 19, 2008

कत' विदा भेलौं?

मोन भेल कने घुइम के आबी। कपड़ा- लत्ता पहिरते रही कि रजुआ दौरल एल .... संग जाई के रट-रट लागल। कियेक ने, घूमे ले ल जेबई त लामंचुस भेटतै, आ भाग रहले त सिंघारा सेहो । चल तखन, जल्दी से तैयार भ जो, कहि हम्हु केश फेर लगलौं।

२ मिनट में सामने ठार छल हाथ में झोरा लेने आ एकटा पुर्जी। ऐना बुझाइल जे एत्तेक काल से अहि हेतु षड्यंत्र रचल जा रहल छल भानस में। बटुआ खोलि पाई गिन लगलौं। आई उधारी ने लेल जेत । कतेक दिन मुंह नुकबैत रह्बई रामजी स', काल्हिये ओकर नौकर न-नुकर करैत छल। आई फेरो ई पुर्जी। नई आई नई। कतेक खपत छै अई घरक। आ एत्तेक पाहून-परख, कोन काज छै एतेक सामाजिकता देखबई के। अहि सब तारतम्य में रही कि रजुआ के छिट्किनी खोलैत देखलों। बेचारा से नई खुजलईत चिचिये लागल। कने काल ले सबटा चिंता बिसरा गेल। पनबट्टी ल विदा भेलौं पुब दिस। रजुआ लुटकुनिया बनल पाछू-२ आब लागल।

(क्रमशः)

Friday, April 11, 2008

चिट्ठी

चिट्ठी लिखे के मोन होइत अछि
ठीक से मोन नई अबैत अछि कि कत्तेक दिन भेल चिट्ठी लिखना -
१० साल वा ओहू स बेसी

स्कूल में परहैत रही - नवोदय विद्यालय
हॉस्टल से कहियो काल घर चिट्ठी लिखी
नब-नब सीखने रही तहु दुआरे,

कोई भेटैत छल त ओकर पता पुइछ के नोट क ली;
आ छुट्टी दिन डायरी के पिछला पन्ना के अध्ययन क के
दु- चाइर गोटा के नाम टिक करी चिट्ठी लिखबा लेल
मुदा गप्प कमोवेश एक्के-जेहन
"आदरणीय ............., सादर प्रणाम ............................................. "

आ फेर ओई पर टिकेट लगाबी, पता लिखी डायरी से देख-२
साँझ में विदा होई चिट्ठी खसबै ले - एक से दु हफ्ता लगैत छल चिट्ठी पहुँचै में
मास- दु मास पर ओकर जवाब आबे
अखनो परल अछि घर पर हमर लिखल पत्र आ आइल जवाब
आब पढ़ई छी त हँसी छुटैत अछि - १० साल पूर्व येह अनमना छल।

फेर घर में टेलीफोन एल - नब-नब
आब चिट्ठी लिखै में आस्कत लागा लागल
बूथ पर लोकक भीड़ बढ़एत गेल आ डाक-पेटी खलियैत गेल
कहियो काल आदतन चिट्ठी अवश्य लिखी मुदा ओ डायरी में पड़ले रही जे -
साल- दु साल पर कहियो कोनो कागत संगे ओ चिट्ठी डाक-पेटी में जे
आ जवाब आब फोने पर- इहो जे चिट्ठी पहुंचल की नई ?
पहिने बला उत्साह नई रहल - ख़त्म होइत गेल।

आब त मोबाइल जेबी में ल'के घुमैत छी -
चिट्ठी-पत्री अप्रासंगिक भा गेल अछी
ललका डिब्बा (डाक-पेटी) मुंह दुसैत अछि।

डायरी में आब पता नई लिखाइत छै-
पुरना पता सब सेहो हरा गेल।

माँ कहियो काल कहैत रहै छैत-
मुदा आब चिट्ठी नई लिखाइत अछि
ओ कला बिसरा गेल - ओ लगाव जाइत रहल।

Thursday, April 10, 2008

थकमकैत

मिथिला में जन्म भेल, मैथिल छी
सोचलौं मैथिली में लिखल जे -
आब त ब्लॉगर सेहो मैथिली (देवनागरी) बुझैत अछि।

मुदा अंग्रेज़ी में मैथिली टाइप केनाई -
आ ई नबका एडिटर
कांफुजिया गेलऔं - अकछ भ गेलों,
अखैन विश्राम लइत छी,
- पुन्नू झा