Saturday, January 31, 2009

सरस्वती पूजा

काइल घर फ़ोन लगेलौं पता लागल सरस्वती पूजा छै माँ कहलें किताब नै छुबि लेल, हँसी छुटल, संग-संग मोनक गाड़ी विदा भेल अतीत में। १५ वर्ष पूर्व, ठीक से मोन परैत अछि, सरस्वती पूजा के अलगे उत्साह रहित छल। घर में उध्सल किताब कॉपी सरियेल जाई, चौकी पर चौकी बैसा के भगवती के स्थापित केल जाई। धुप, दीप, ताम्बुल, नाना-विध नैवैद्यान, मोटका चमकैत गत्ता वाला किताब सब ऊपर। भोर से नहा सुना के लागल रही इंतज़ाम में। सबसे खुशी रहित छल जे ओई दिन किताब-कॉपी छुनाई मना रहै। लोकक विश्वास छै जे भगवती प्रसन्न भेला पर किताब में प्रवेश जेती, फेर आनंद ! सरस्वतीक आशीर्वाद हुए नै मरखाह मास्टरक डर नै पहारा रटि के चिंता। "विद्या ददाति विनयम"....

पता नै गप्प कतेक सत्य छल, जतेक साल भगवतीक आराधना केलों, भगवती प्रसन्न सन नै बुझैले। भरिसक धुपक धुआं से औना गेल वा नैवद्य में घी के मात्र कम गेल हुए। कि पता बहुत कॉपी खोली के देखने होइत होमवर्क के बदला में कट्टम-कुट्टी देख तमसा गेल होइत। जे से, हुनकर मोन, गिनती साधारण विद्यार्थी में रहल भुसकोल नै कह्लौने त।

बहुत साल भेल सरस्वती पूजा देखना। कॉलेज तक तैयो हॉस्टल में मूर्ति बैसोल जे, मुदा आब पूजा से बेसी जोड़ प्रसाद पर रहे। किताब कॉपी के जगह सन-पपडी आ पेडा ल ललक, आरती से बेसी मोन रौतका भोज पर रहे। मंत्र-जाप बिसरा गेल, सरस्वतीजी के नवका सिनेमा के सुगम संगीत सुनी के संतोष करा परें। किताब कॉपी अवश्य नै छुल जे। एतबा अभ्यास बनल रहल। भगवती प्रसन्न भेली की नै, नै कैह, मुदा भरिसक ई निरंतरता से कनेक मुंह डोलेलेंन। ओई समयक हमर सोच एतबे रहल- "कर्मण्ये वा धिखा रस्ते....."। पिछला ४-५ साल से ओतबो पूजा नै क सकलौं। नै सरस्वती पूजा के छुट्टी भेटे, नै क्यो ई सब चीज़ के मान्यता दे। धर्म के जगह विग्यान ल ललक। भगवतीक उपस्थिति के आभास जैत रहल, गीताक श्लोक सेहो मोन नै रहल।

आब अमरीका में रहित छि। अध्ययन अखैन धरी चिल रहल ऐछ। विद्या के शोध में मग्न रहित छि, विद्याक देवी अपन भक्त सब संगे मग्न हेती। कतौ लग पास में सरस्वती पूजा भ रहल ऐछ। दोस्त चलई लेल कैह रहल ऐछ। जा सकैत छि, मुदा नै जेब। १२$ के दर्शन छै, संग-२ भोज सेहो "कॉम्बो ऑफर"। मुदा किताब में गत्ता नै लागैत अछि, धुप-दीपक सरंजाम सेहो नै ऐछ, आ भगवती खेती की॥ पोपकोर्न?

सरस्वती पूजा अप्रासंगिक भ चुकल अछि।